धरतीआबा बिरसा मुण्डा जयंती एवं तलक्कल चंदु के बलिदान दिवस पर रक्तदान शिविर व श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजितआदिवासी समाज के दो महान स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रांतिकारी योद्धा धरतीआबा बिरसा मुण्डा की 150वीं जयंती तथा तलक्कल चंदु के 110वें बलिदान दिवस के पावन अवसर पर भिलाई इस्पात संयंत्र के शेड्यूल्ड ट्राइब एम्पलाईज वेलफेयर एसोसिएशन ने जाट भवन सेक्टर-5 में एक विशेष रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया। यह आयोजन जिला अस्पताल दुर्ग के सहयोग से किया गया। जिसमें कुल 41 यूनिट रक्त एकत्रित हुआ।कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य दोनों महापुरुषों के आदर्शों को जन-जन तक पहुँचाना तथा समाजसेवा के माध्यम से उनकी स्मृति को जीवंत रखना था। आयोजन में जिला अस्पताल दुर्ग की 10 सदस्यीय चिकित्सकीय टीम ने पूर्ण सहयोग प्रदान किया।

रक्तदान शिविर : जीवनदान की अनुपम श्रद्धांजलिसुबह 10:30 बजे से शाम 4 बजे तक चले रक्तदान शिविर में कुल 41 स्वैच्छिक रक्तदाताओं ने उत्साहपूर्वक रक्तदान किया। प्रत्येक रक्तदाता को प्रमाण-पत्र सम्मान स्वरूप प्रदान किया गया।रक्तदान शिविर के बाद धरतीआबा बिरसा मुण्डा और तलक्कल चंदु की तस्वीर पर भावपूर्ण पुष्पांजलि एवं माल्यार्पण कार्यक्रम संपन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री प्रदीप टोप्पो ने की।अध्यक्षीय भाषण में श्री प्रदीप टोप्पो ने कहा, “इन दोनों महापुरुषों ने अपनी जान की बाजी लगाकर हमें सम्मानजनक जीवन का मार्ग दिखाया। हमें उनके सपनों को साकार करने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन एवं एकता पर बल देना होगा।”जबकि श्री नरेश हांसदा ने दोनों महापुरुषों के जीवन, संघर्ष एवं बलिदान पर विस्तृत प्रकाश डाला।धरती आबा बिरसा मुण्डा : आदिवासियों के भगवानबिरसा मुण्डा (15 नवंबर 1875 – 9 जून 1900) झारखंड के खूँटी जिले के उलीहातु गाँव में जन्मे थे। मात्र 25 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सबसे उग्र आदिवासी विद्रोह का नेतृत्व किया। “अबुआ दिशुम, अबुआ राज” (हमारा देश, हमारा शासन) का नारा देकर उन्होंने मुण्डा, उरांव एवं अन्य आदिवासी समुदायों को एकजुट किया।1895 से 1900 तक चले उनके ‘उलगुलान’ (क्रांति) आंदोलन ने न केवल जमींदारी प्रथा, जबरन बेगार और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई, बल्कि आदिवासी अस्मिता को राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ा। 9 जून 1900 को राँची जेल में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हुई, जिसे आज भी जहर देकर हत्या माना जाता है। भारत सरकार ने उन्हें “धरतीआबा” की उपाधि दी और उनकी जयंती को 2019 से पूरे देश में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जा रहा है।तलक्कल चंदु : केरल के आदिवासी शेरतलक्कल चंदु (1850 के आसपास – 15 नवंबर 1915) केरल के वयनाड क्षेत्र के पनिया जनजाति के महान क्रांतिकारी थे। ब्रिटिश शासन और स्थानीय जमींदारों द्वारा आदिवासियों पर किए जा रहे अमानवीय अत्याचारों के खिलाफ उन्होंने सशस्त्र संघर्ष छेड़ा।1915 में पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में घायल होने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें मंजियम जंगल में ले जाकर 15 नवंबर 1915 को गोली मार दी। उनके शव को जंजीरों से बाँधकर प्रदर्शन के रूप में लटकाया गया था। केरल में उन्हें “वयनाड का बिरसा मुण्डा” कहा जाता है और उनका बलिदान दिवस आदिवासी समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है।कार्यक्रम में उपस्थित लोगों ने दोनों महापुरुषों के दिखाए मार्ग पर चलते हुए आदिवासी अधिकारों, शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वावलंबन की दिशा में काम करने का संकल्प लिया। कि वे आदिवासी समाज के उत्थान, संवैधानिक अधिकारों की रक्षा एवं रक्तदान जैसे सामाजिक कार्यों में सक्रिय भागीदारी निभाएँगे।यह आयोजन न केवल दोनों महापुरुषों को सच्ची श्रद्धांजलि थी, बल्कि आदिवासी गौरव और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक भी बना।कार्यक्रम में अध्यक्ष प्रदीप टोप्पो, कार्यकारी अध्यक्ष अजय कुमार, महासचिव श्याम सुंदर मुर्मू, कोषाध्यक्ष भिमांशु कच्छप, संगठन सचिव घनश्याम सिंह सिदार, ललित कुमार बघेल, सुनील कच्छप, बी बी सिंह, लेखराम रावटे, किरण बास्की, हेमलाल करमाली, नरेश हांसदा, लाॅरेंस मधुकर, राम सिंह मरकाम, सतेन्द्र बाड़ा, माझा हांसदा, रंजीत टोप्पो, हरीशचंद्र, सुरेन्द्रनाथ एक्का इत्यादि अन्य सदस्य उपस्थित थे।


