वीर कोमरम भीम की जयंती दिवस पर भिलाई स्टील प्लांट शेड्यूल्ड ट्राइब एम्पलाईज वेलफेयर एसोसिएशन ने किया आदिवासी क्रांतिकारी को नमन।

वीर कोमरम भीम की जयंती दिवस पर दिनांक 22.10.2025 को भिलाई स्टील प्लांट शेड्यूल्ड ट्राइब एम्पलाईज वेलफेयर एसोसिएशन (Bhilai Steel Plant Scheduled Tribe Employees Welfare Association) ने जयंती दिवस को मनाया। ।

कार्यक्रम की शुरूआत उपाध्यक्ष (द्वितीय) मनोज हेम्ब्ररोम के द्वारा की गई। उपस्थित सभी सदस्यों के द्वारा वीर कोमरम भीम की तस्वीर पर फूल माल्यार्पण किया गया। इसके बाद उपस्थित सदस्यों ने सामूहिक रूप से ‘वीर कोमरम भीम अमर रहें’ का नारा लगाया। साथ इस कार्यक्रम को शुरूआत करने के उद्देश्य को बताया गया कि हमारे होने वाले सभी आदिवासी महापुरूषों को सम्मान के साथ याद किया जाये और उनके इतिहास व उपलब्धियों को समाज को बताया जा सके। जोकि हमारे लिये एक प्रेरणा स्त्रोत हैं।अध्यक्ष प्रदीप टोप्पो के द्वारा वीर कोमरम भीम की जयंती के अवसर पर संदेश दिया गया कि दिनांक 22 अक्टूबर 2025 को वीर कोमरम भीम जयंती के अवसर पर, हम उस अमर क्रांतिकारी को सादर स्मरण करते हैं जिन्होंने गोंड आदिवासी समाज के अधिकारों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। वीर कोमरम भीम (1901-1940) न सिर्फ एक योद्धा थे, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम के वे नायक हैं जिनकी गूंज आज भी आदिवासी आंदोलनों में सुनाई देती है। उनकी जयंती हमें याद दिलाती है कि संघर्ष कभी व्यर्थ नहीं जाता – यह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाता है।वीर कोमरम भीम का संक्षिप्त जीवन परिचयवीर कोमरम भीम का जन्म 22 अक्टूबर 1901 को हैदराबाद राज्य (वर्तमान तेलंगाना) के असिफाबाद मंडल के संकेफल्ली गांव में एक गोंड जनजातीय परिवार में हुआ था। बचपन से ही जंगलों की गोद में पलते हुए उन्होंने आदिवासियों के शोषण को करीब से देखा। मात्र 15 वर्ष की आयु में उनके पिता को वन अधिकारियों ने मार डाला, जब उन्होंने आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा की कोशिश की।इसके बाद उनका परिवार सरदारपुर गांव चला गया, लेकिन शोषण का सिलसिला जारी रहा।1920 में, जब जमींदार लक्ष्मण राव के अधिकारी सिद्दीक साब ने फसल कटाई के समय कर वसूलने का प्रयास किया, तो कोमरम भीम ने क्रोध में उन्हें मार डाला और पुलिस की गिरफ्त से बचने के लिए चंदा शहर भाग गए। वहां उन्होंने एक प्रिंटिंग प्रेस मालिक विठोबा से शरण ली और हिंदी, उर्दू व अंग्रेजी सीखी। बाद में असम के चाय बागानों में काम किया, लेकिन मातृभूमि की पुकार ने उन्हें वापस बुला लिया।1930 के दशक में, हैदराबाद के निजाम की सामंती सत्ता के खिलाफ उन्होंने गोरिल्ला युद्धनीति अपनाई। उन्होंने अन्य गोंड नेताओं के साथ मिलकर विद्रोह का बिगुल फूंका, जो बाद में 1946 के तेलंगाना विद्रोह का आधार बना। उन्होंने “जल, जंगल, जमींन” का ऐतिहासिक नारा दिया, जो आदिवासियों के पानी, जंगल और भूमि पर अधिकार की मांग का प्रतीक बन गया। यह नारा आज भी आदिवासी आदोंलनों के संघर्षों में गूंजता है।27 अक्टूबर 1940 को जोधघाट गांव में निजाम की पुलिस के साथ मुठभेड़ में उनकी शहादत हुई। वे मात्र 39 वर्ष के थे, लेकिन उनके बलिदान ने गोंड संस्कृति में उन्हें देवता (पेन) का दर्जा दे दिया।वीर कोमरम भीम के प्रमुख योगदान□ आदिवासी अधिकारों की रक्षा : निजाम की सत्ता द्वारा लगाए गए भारी कर, जबरन श्रम और भूमि हड़पने के खिलाफ संघर्ष।□ गोरिल्ला सेना का निर्माण : 12 जिलों के आदिवासियों को एकजुट कर क्रांतिकारी दल बनाया, जो जमींदारों पर हमला करता था।□ सांस्कृतिक प्रेरणा : उनकी कहानी तेलुगु लोकगीतों, फिल्मों (जैसे 1990 की ‘कोमरम भीम’ और 2022 की ‘आरआरआर’) में अमर है।□ राजनीतिक विरासत : तेलंगाना राज्य आंदोलन के प्रारंभिक चरण से जुड़े, और उनके नाम पर कोमरम भीम जिला नामित है।जयंती संदेश”जल, जंगल, जमींन – हमारा हक है, हमारा संघर्ष है!”बी.एस.पी. एस.टी. एम्पलाईज वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रदीप टोप्पो ने कहा कि वीर कोमरम भीम जयंती के पावन अवसर पर, हम उस शेर को नमन करते हैं जिन्होंने जंगलों की छांव में छिपकर साम्राज्यवाद की जड़ें काट दीं। कोमरम भीम साहब हमें सिखाते हैं कि स्वाभिमान की लड़ाई कभी हार नहीं मानती। आज जब आदिवासी भूमि, वन और संस्कृति पर संकट मंडरा रहा है, उनका नारा हमें एकजुट होने का संदेश देता है। आज हमें एक संकल्प लेने के साथ मजबूती से खड़े होने की आवश्यकता है कि उनकी महान गाथा को नई पीढ़ी तक पहुंचाएं, और अपने हक के लिए खड़े हों।सदस्यों के द्वारा कोमरम भीम अमर रहें! जय आदिवासी! का नारा लगाया गया।कार्यक्रम में एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रदीप टोप्पो, कार्यकारी अध्यक्ष अजय कुमार, उपाध्यक्ष (द्वितीय) मनोज हेम्ब्ररोम, उपाध्यक्ष (तृतीय) ओमनाथ नेताम, महासचिव श्याम सुंदर मुर्मू, जोनल सचिव किरण बास्की, कार्यकारिणी सदस्य राम सिंह मरकाम, सदस्यगण – पी. एस. सिदार, लेखराम रावटे, घनश्याम सिंह कोठारी उपस्थित रहे।


